भूकंप उत्पत्ति के कारण एवं प्रभाव
प्रस्तावना -:
भूकंप धरातलीय स्वरुप में परिवर्तन लाने वाली एक आकस्मिक आंतरिक शक्ति है। भूकंप का शाब्दिक अर्थ धरती या पृथ्वी का कम्पन या कांपना है। अर्थात भूगर्भिक या आंतरिक शक्तियों के प्रभाव से जो हलचल होती है या कम्पन उत्पन्न होता है, उसे "भूकंप" कहा जाता है।
होम्स के अनुसार," भूगर्भिक शैलों के विक्षोभ स्रोत से उठने वाले लहरदार कम्पन को भूकंप कहते है।
भूकंप उत्पत्ति के कारण
- प्लेट विवर्तनिकी : भूकंप उत्पत्ति के कारणों में सर्वप्रमुख कारण प्लेट विवर्तनिकी है। क्योंकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार स्थल भाग अनेक कठोर व दृढ़ प्लेटों से निर्मित है। जब ये प्लेट परष्पर विपरीत दिशा में संचलन करती है तो दाब मुक्त होने पर प्लेटों के संरक्षी किनारों में रूपांतरण भ्रंश बनते है, जिसके फलस्वरूप भूकंप आते है, किंतु ये कम गहराई वाले होते है। जबकि दो प्लेटें जब आमने - सामने तेजगति से टकराती है, तब अत्यधिक गहराई वाले भूकंप आते है। अत: अधिकांशत: भूकंपीय घटनाएं प्लेटों के घर्षण के फलस्वरूप होती है।
- ज्वालामुखी क्रिया : ज्वालामुखी क्रिया भूकंप उत्पत्ति के कारणों में एक प्रमुख कारण है। ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरूप जब उच्च दाब व तापमान वाली जलवाष्प एवं भूगर्भिक गैसें भूगर्भ से बाहर आने का प्रयास करती है, जिससे धरातलीय कम्पन्न के फलस्वरूप ज्वालामुखी उद्गार से पूर्व भूकंप आते है। किंतु कभी - कभी ज्वालामुखी उद्गार के बिना भी भूकंप आते है।
- जलवाष्प एवं गैसों की क्रियाशीलता : दरार, भ्रंश या अन्य किसी कारण से जब सतही जल भू - गर्भ तक चला जाता है, जिससे अत्यधिक ताप के कारण जलवाष्प एवं गैसों में परिवर्तित हो जाता है। और ये जलवाष्प तथा गैसों का मिश्रण ऊपर उठने का प्रयास करती है और धरातल के कमजोर भाग को भूकंप के रूप में प्रभावित करती है।
- भूगर्भिक असंतुलन : जिन स्थानों पर भू - संतुलन की अव्यवस्था पायी जाती है। वहां जब गगनचुम्बी पर्वतीय क्षेत्र के निचले भाग व गहरे सागर आस - पास स्थित हो उस स्थिति में भू - संतुलन की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। जिससे पुन: संतुलन स्थापित करने हेतु आंतरिक शक्तियों व धरातल पर समतल स्थापक शक्तियों के मध्य निरंतर प्रभावी प्रक्रियाएं होती है जिससे भूकंप भी आ सकते है।
- जलीय भार : किसी विषम धरातलीय प्रदेश में जहाँ कभी भ्रंश एवं तीव्र संपीडन की क्रिया का प्रभाव रहा हो। ऐसे क्षेत्र में यदि विशाल बांध का निर्माण किया जाये तो ऐसे क्षेत्र में जलीय भार के कारण वहां भूकम्प आ सकते है।
- रीड का सिद्धांत / चट्टानों का लचीलापन : इस सिद्धांत के अनुसार, जब चट्टानों पर क्षमता से अधिक दबाव पड़ता है। तो ये चट्टानें इसे सहन नहीं कर पाती और टूट जाती है। और ये विखंडित चट्टानें पुन: खींचकर अपनी पुरानी स्थिति में आने लगती है। जिससे वहां कुछ स्थान खाली हो जाता है या हो सकता है, अत: ऐसे स्थानों पर भूकंप आ सकता है।
भूकंप के प्रभाव
भूकंप एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है जिसके आने से चारों ओर तबाही मच जाती है तथा जिसके आगे आज भी मानव और सम्पूर्ण विज्ञान जगत पूर्ण रूप से असहाय है।
हानिकारक प्रभाव -:
- सांस्कृतिक भू - दृश्यों का विनाश : भूकंप आते ही धरातल पर निर्मित मकान, सड़क व रेलमार्ग टूट जाते है। तथा बाँध फूट जाते है जिससे भारी जान - माल की हानि होती है। महासागरीय भागों में भूकंप आने से उठने वाली सुनामी की विनाशलीला होती है।
- जनहानि : जब सघन आबादी वाले क्षेत्रों में भूकम्प आता है तो मलबे के नीचे दबने से व बाढ़ के प्रभाव से लाखों लोग तात्कालिक प्रभावित होते है।
- धरातलीय संरचना में परिवर्तन : विनाशकारी भूकम्पों के प्रभाव से धरती में दरारे निर्मित हो जाती है। और कभी - कभी तो सम्पूर्ण गांव, सड़क, भवन आदि धरती में समां जाता है या जमीनें भी धरती में धंस जाया करती है।
- संसाधनों पर प्रभाव : भूकंप प्रभावित क्षेत्रों के प्राकृतिक एवं कृत्रिम संसाधनों की भारी हानि होती है तथा उस क्षेत्र के आर्थिक एवं पर्यावरणीय दशा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
लाभकारी प्रभाव -:
- कभी - कभी भूकंपीय क्रिया के फलस्वरूप भूगर्भ में छिपे खनिज सतह पर आ जाते हैं, जिससे उन्हें निकालना आसान हो जाता है।
- कभी - कभी महासागरीय तटों के भाग ऊपर उठ जाते हैं, जिससे उपयोगी प्राकृतिक बंदरगाह का निर्माण होता है।
- कभी - कभी बंजर भूमि के धंसने से उपजाऊ भूमि का निर्माण होता है।
निष्कर्ष -:
उपरोक्त लिखित विवरण के अनुसार यह ज्ञात होता है कि, भूकंप एक अत्यंत महा - विनाशकारी प्राकृतिक घटना है, जिससे कोई भी व्यक्ति, प्रदेश तथा देश पूर्ण रूप से छुटकारा नहीं पा सका है और सम्पूर्ण विज्ञान जगत भी भूकंपीय घटनाओं के सामने स्वयं को असहाय महसूस करता है। अत: प्रकृति की इस प्रलय तथा विनाशलीला को देखने आज समस्त मानव समूह एवं विज्ञान जगत मजबूर हैं।