बिस्मार्क एवं उसकी विदेश नीति।

 बिस्मार्क का आरंभिक जीवन 

बिस्मार्क का जन्म - 1815 AD , ब्रैंडेबर्ग,में एक जमीदार के घर हुआ था। उन्होने अपनी प्रारंभिक शिक्षा - व्यायामशाला में प्राप्त की उसके बाद उन्होने गोर्तिजन एवम बार्लिन विश्वविद्यालय में प्राप्त कर प्रशा (आधुनिक जर्मनी) में सिविल सर्विस में सेवा की लेकिन  02 साल बाद नौकरी छोड़ दी में और 'पौमेरैनिया' में अपनी जागीर की देख - रेख करने लगे। इसी बीच उन्होने विभिन्न भाषाओ, राजनीति, इतिहास और दर्शन आदि विषयों स्वअध्याय किया।




बिस्मार्क की राजनीति में प्रवेश 

बिस्मार्क का राजनीतिक जीवन 1845 AD से आरंभ हुआ और इसी साल वे पौमेरैनिया प्रान्तीय संसद ( Diet ) के सदस्य बने। 

1851 AD में उन्होने फ्रैंकफर्ट की संसद में प्रशा का नेतृत्व किये व इसी महासभा मे वे 8 साल तक प्रशा का नेतृत्व करते रहे इस दौरान वे बड़े - बड़े राजनीतिज्ञों से मिले एवं शासकों से भी उनका परिचय हुआ जिससे वे जर्मन राजनीति के दाव पेंचों को बड़ी अच्छी तरह से सीख गए। वे 8 साल तक ऑस्ट्रिया का विरोध करते रहे क्योंकि उनको अनुभव हो चूका था कि ऑस्ट्रिया के रहते "जर्मनी का एकीकरण" नहीं हो सकता अंत: 1859 AD मैं उन्हें  वापस फ्रैंकफर्ट का राजदूत बन दिया गया तथा 1862 AD फ्रांस का राजदूत बनाया गया जहां उन्होनें नेपोलियन तृतीय के चरित्र का अध्ययन किया।और इसी वर्ष के अंत में सम्राट विलियम प्रथम ने बिस्मार्क को अपना चांसलर नियुक्त किया

बिस्मार्क एवं उनकी विदेश नीति

रूपरेखा - प्रस्तावना 

            - बिस्मार्क का संक्षिप्त परिचय 

            - बिस्मार्क की विदेश नीति ( 1870 - 1890 ) 

            • यूरोप की राजनीति में फ्रांस की एकांकी रखना 

            • राज्य विस्तार की नीति का त्याग

            • इंग्लैंड से सद्भावपूर्ण व्यवहार

            • ऑस्ट्रिया से घनिष्ठता 

            • रूस से मित्रता

            • जर्मनी के पक्ष में गुटों का निर्माण

            - निष्कर्ष 

प्रस्तावना - यूरोपीय इतिहास में 1870 AD का वर्ष परिवर्तन का वर्ष था, इस वर्ष यूरोप में नवीन युग का आरंभ हुआ जिसका मुख्य केंद्र जर्मनी था। 1870 AD में जर्मनी के एकीकरण के साथ यूरोप की राजनीति में एक नवीन जर्मन राष्ट्र का उत्थान हुआ जिसका संपूर्ण श्रेय " बिस्मार्क " को जाता है। 1870 AD से पूर्व तक यूरोप राजनीति का केंद्र फ्रांस था लेकिन जर्मनी से "सेडोवा के युद्ध" में पराजित होने के बाद फ्रांस का प्रभाव समाप्त हो गया और आगामी अर्ध शताब्दी तक संपूर्ण यूरोप की राजनीति पर जर्मनी का प्रभाव  स्थापित रहा।

बिस्मार्क की विदेश नीति ( 1870 - 1890 ) - बिस्मार्क जर्मनी का चांसलर था जिसने मात्र 06 वर्ष में ( 1864 - 1870) रक्त एवम लौह की नीति' का पालन कर "जर्मनी का एकीकरण" किया जिस कारण 1870 - 1890 के काल को "बिस्मार्क युग" के नाम से जाना जाता है जिन्हे "आधुनिक जर्मनी का निर्माता" भी कहा जाता है।

बिस्मार्क की विदेश नीति (1870 - 90 )

• यूरोप की राजनीति में फ्रांस की एकांकी रखना- सैडोवा के युद्ध में फ्रांस की हार व बिस्मार्क की जर्मनी रूपी जीत तथा फ्रैंकफर्ट की अपमानजनक संधि के बाद बिस्मार्क ने जर्मनी को सुरक्षित रखने का प्रयास किया क्योंकि वास्तव में पराजित फ्रांस के लिए उसके "अल्सास तथा लारेन " जैसे महत्वपूर्ण औद्योगिक नगरों का (फ्रैंकफर्ट की अपमानजनक संधि द्वारा) छिना जाना और अपने राष्ट्र का अपमान फ्रांस कभी भी भूल नहीं सकता था अंत: बिस्मार्क ने फ्रांस को यूरोप की राजनीति में मित्रहीन बनाना अपने विदेश नीति का लक्ष्य रखा व अनेक यूरोपीय देशो से संधि - समझौते कर फ्रांस को मित्रहीन कर दिया।

• राज्य विस्तार की नीति का त्याग - 1870 AD में जर्मनी के एकीकरण के बाद बिस्मार्क ने जर्मनी में शांति - वैभव स्थापित करने व जर्मनी को सुव्यवस्थित एवम संगठित रखने के उद्देश्य से जर्मनी को एक "संतुष्ट एवंम तटस्थ" राज्य घोषित किया।

• इंगलैंड से सद्भावपूर्ण व्यवहार - यूरोप की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इंग्लैंड से मित्रता फ्रांस को एकांकी रखने के लिए आवश्यक थी अंत: बिस्मार्क ने इंग्लैंड के ध्यानाकर्षण हेतू यह घोषणा की कि," जर्मनी एक महाद्वीपीय देश है साम्राज्यवादी नहीं" तथा उसने समुद्र पार उपनिवेश स्थापित करने की ओर ध्यान नहीं दिया एवम अपने जहाजरानी का विकास इंग्लैंड के समकक्ष नहीं किया।

• ऑस्ट्रिया से घनिष्ठता - 1866 AD में हुए ऑस्ट्रिया एवम प्रशा के मध्य युद्ध से बिस्मार्क ने यह अनुभव किया की यूरोप की राजनीति में ऑस्ट्रिया ही उसका सर्वाधिक सहायक देश हो सकता है अंत: बिस्मार्क ने प्रशा एवम ऑस्ट्रिया की परंपराओ मे समानता होने के आधार पर ऑस्ट्रिया को जर्मनी का मित्र बनाने का प्रयास किया जिससे 1879 - 1914 तक ऑस्ट्रिया ,जर्मनी का घनिष्ट मित्र रहा।

• रूस से मित्रता - रूस, यूरोप में एक ऐसा देश था जो थोड़ी सी असावधानी महसूस करने पर जर्मनी का साथ छोड़ सकता था अंत: बिस्मार्क ने रूस को अपने मित्र बनाए रखना का निरंतर प्रयास किया।

• जर्मनी के पक्ष में गुटों का निर्माण - इंग्लैंड का यूरोपीय राजनीति से अलग रहने के कारण बिस्मार्क 05 देशों को ही शक्तिशाली समझता था जो क्रमश: जर्मनी, फ्रांस, रूस, इटली व ऑस्ट्रिया थे जिसमें 03 का गुट बनाकर बिस्मार्क यूरोपीय राजनीति  में जर्मनी का वर्चस्व स्थापित करना चाहता था।

सम्राट विलियम प्रथम (जर्मनी के शासक) ने बिस्मार्क के विषय में लिखा है कि ,"

" बिस्मार्क एक ऐसा बाजीगर था जो एक साथ 05 गेंदों (फ्रांस,रूस  इंगलैंड , इटली, ऑस्ट्रिया) के साथ खेल सकता था जिसमें 02 गेंदे सदैव हवा में रहती थी।"                               पेज क्रमांक - 295                                      (साहित्य भवन प्रकाशन बीए प्रथम वर्ष)


निष्कर्ष - उपरोक्त लिखित विवरणा अनुसार यह ज्ञात होता है कि  बिस्मार्क 19वीं शताब्दी में न केवल जर्मनी वरन संपूर्ण यूरोप का एक महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञ था। जिसने जर्मनी के एकीकरण हेतू नैतिक, अनैतिक सभी साधनो का प्रयोग करते हुए यूरोप की राजनीति का केंद्र "बर्लिन" को बना दिया अंतत: बिस्मार्क एक महान कुटनीतिज्ञ था जिसके जीवन का आदर्श व सफलता को जर्मनी के वर्चस्व के रूप में देखा जा सकता है।

संदर्भ ग्रन्थ सुची - साहित्य भवन प्रकाशन(बी.ए l एवं ll वर्ष )

लेखक का नाम - डॉ ए के मित्तल, डॉ ए के मित्तल मित्तल एवं डॉ आर अग्रवाल 

संस्कारण - 2021 एवं 


           

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