परिचय
सम्राट अशोक मौर्य साम्राज्य के द्वितीय शासक बिन्दुसार के पुत्र थे। जिन्हे न केवल भारत वरन विश्व के महानतम् शासकों में से एक माना जाता है। अशोक का शासनकाल भारतीय इतिहास का अत्यंत गौरवमयी काल था क्योंकि उस समय अशोक ने अपनी साधारण क्षमताओं से भारत को सर्वोमुखी उन्नति प्रदान की।
जिनकी प्रशंसा करते हुए एच.जी.वेल्स ने लिखा है ," इतिहास के पृष्ठों पर रेंगने वाले सहस्त्रों राजाओं के नामों के मध्य अशोक का नाम सर्वोपरी नक्षत्र के समान दैदीप्यमान है।"
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||आरंभिक जीवन ||
दुर्भाग्यवश अशोक के अभिलेख उसके जीवन की आरंभिक घाटनाओं के विषय में मौन है अंत: अशोक के आरंभिक जीवन के विषय में जानने के लिए साहित्यिक स्रोतो पर ही निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन अशोक की माता कौन थी? इस विषय में इतिहासकारों में मतभेद है।
बौद्ध साहित्य 'अशोकावदान' के अनुसार "अशोक की माता नाम 'सुभद्रांगी' था जिसे एक दरबारी षडयंत्र के कारण राजा से अलग रखा गया था लेकिन अंत में रानी सुभद्रांगी ने राजा से मिलाप होने पर एक पुत्र को जन्म दिया।" इसके अलावा अशोक के विषय में अनेक अन्य तथ्य इतिहास के पन्नो में मौज़ूद है लेकिन अधिकांश इतिहासकारों ने "सुभद्रांगी" को ही अशोक की माता माना है।
अशोक एवं उसका धम्म
रूपरेखा - प्रस्तावना
- अशोक द्वारा धम्म अपनाये जाने के कारण
- अशोक के धम्म का सिद्धांत
- अशोक के धम्म का पक्ष
- निष्कर्ष
प्रस्तावना - अशोक मौर्य साम्राज्य के तृतीय शासक थे उनके पिता का नाम 'बिंदुसार' था। अशोक महान एक चक्रवती सम्राट थे जिनकी गणना भारत के साथ - साथ विश्व के महानतम् शासकों में की जाती है। अशोक का शासनकाल 273 - 232 ईसापूर्व माना जाता है लेकिन सम्राट अशोक की महानता इतने विस्तृत साम्राज्य के शासक होने के बाद भी राजनीतिक ना होकर धार्मिक थी जिसकी जानकारी हमें अशोक के धम्म से प्राप्त होती है।
| अशोक द्वारा धम्म अपनाये जाने के | कारण
अशोक के तत्कालीन पृष्ठभूमि का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि अशोक अपने राज्याभिषेक के समय बौद्ध नही थे लेकिन उनके शासनकाल में हुए कलिंग के युद्ध ( 261 ईसापूर्व ) ने उनका आचरण सदैव के लिए परिवर्तित कर दिया। इस युद्ध में भीषण रक्तपात व नरसंहार हुआ था जिसमें हजारो लोग मारे गए जिनके मारे जाने से उनके परिवारजनों को अत्यंत कष्ट हुआ, सम्राट अशोक ने स्वयं यह सब अपनी आंखों से देखा था अंत: अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात " भेरी घोष" त्याग कर "धम्म घोष" अपना लिया।
अशोक के धम्म का सिद्धांत
सम्राट अशोक अपने "द्वितीय स्तंभ लेख" में स्वयं से यह प्रश्न करते हैं कि धम्म क्या है ? जिसका उत्तर वे स्वयं देते है कि -
• अपासिनवे - दुष्कार्यों से बचना ( Freedom from depravity)
• बहुकथाने - बहुकल्याण ( Much good )
• दया - करुणा ( Mercy )
• सचे - उदारता ( Liberality )
• साचये - पवित्रता ( Purity )
||अशोक के धम्म का पक्ष||
अशोक महान के धम्म के दो महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं -
1. व्यवहारिक पक्ष - अशोक इस पक्ष में अनेक कर्तव्योंकर्तव्योंकर्तव्यों का पालन करने कहते हैं जिसका वर्णन अग्रलिखित है :
• अनारम्भो प्राणानाम - प्राणवान जीवों की हत्या ना करना।
• अविहिंसा भूतानाम - अस्तित्ववान जीवों की हत्या ना करना।
• मातृ पितृ सुस्त्रुसा - माता पिता की सेवा।
• थेर सुस्त्रुसा - वृक्षों की सेवा।
• गुरुनाम अपचिति - गुरुओं का समादर।
• मित्र संस्तुत नाटिककानाम - मित्रोंं, परिचितों, संबंधों का सत्कार।
• ब्राह्मणसमणानाम दानम सम्पटिपति - ब्राह्मण एवम श्रमणों के प्रति उदारता का व्यवहार।
• दासभत्काम्हि सम्यप्रतिपति - दासों व सेवकों से सम्यक व्यवहार।
• अपव्यता और अपमांडता - अल्प व्यय व अल्प संचय।
2. निषेधात्मक पक्ष - अशोक के धम्म का निषेधात्मक पक्ष भी है जिसमें वे विभिन्न कार्यो को न करने का अनुरोध करते हैं :
• चंडीय - उग्रता ( Violence )
• निठुलिय - निष्ठुरता ( Cruelty )
• क्रोध - क्रोध ( Anger )
• माने - घमंड ( Conceit )
• ईर्ष्या - जलन ( Jealousy )
निष्कर्ष - उपरोक्त लिखित विवरणानुसार यह ज्ञात होता है कि "अशोक का धम्म" न केवल मनुष्यों के लिए वरण समस्त प्राणिजगत के लिए था, जो विश्व बंधुत्व की भावना को अपने भीतर समाहित किये हुए था। सम्राट अशोक जो एक अत्यधिक विशाल साम्राज्य के शासक होते हुए भी उन्होने धम्म की नीति का पालन विवशतापुर्वक न करवा कर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से पालन करने का अनुरोध किया अंत: यही सभी गुण सम्राट अशोक को "अशोक - महान" बनाते हैं।
संदर्भ ग्रंथ सुची - साहित्य भवन प्रकाशन
लेखक का नाम - डॉ.ए.के.मित्तल
संस्करण - 2021
पृष्ठ क्रमांक - 159,160,161,162,163।