परिचय
दुर्भाग्य से चंद्रगुप्त के बाल्यवस्था के विषय मे सर्वमान्य सही जानकरी प्राप्त नहीं है लेकिन जैन साहित्य के अनुसार, "चंद्रगुप्त मौर्य मोरिय नगर के राजा के पुत्र" थे तथा जैन व बौद्ध धर्म के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य "क्षत्रिय" थे।
मौर्य वंश का विकास
चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य वंश के संस्थापक थे , जिनके पुत्र का नाम बिन्दुसार था (शासनकाल - 298 BC - 273 BC) जिन्हे पौराणिक अनुश्रुतियों में भद्रासार एवं नंदसार भी कहा गया है।
परिशिष्ट पर्वन के अनुसार चाणक्य चंद्रगुप्त को जहर के अभयस्त करने के लिए जहर दिया करता था लेकिन एक चंद्रगुप्त की अन्य पत्नी दुर्धरा जो गर्भवती थी उसने चंद्रगुप्त के साथ भोजन किया जिस कारण जहर के प्रभाव से उनकी मृत्यु हो गई है लेकिन चाणक्य ने जल्द ही बालक को पेट से निकलवा दिया जिस दौरान जहर की बूंद बालक के मस्तक पर पड़ने के कारण उन्हें बिंदुसार कहा गया।
बिंदुसार के पुत्र का नाम "अशोक" था (शासनकाल - 269 BC - 232 BC) महान सम्राटअशोक जिन्की गणना विश्व के महानतम शासकों में की जाती है। जिनके समय मौर्य साम्राज्य का विस्तार" उत्तर - पश्चिम में हिंदुकुश - पूर्वी बंगाल तथा उत्तर में हिमालय के तराई - दक्षिण मे मेसूर तक विस्तृत था।"
मौर्य साम्राज्य के प्रमुख शासकों का संक्क्षिप्त विवरन इस प्रकार था लेकिन अशोक के उत्तराधिकारीयों के अयोग्य होने के कारण मौर्य साम्राज्य धीरे धीरे पतन की ओर अग्रसार होने लगा।
चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियाँ
रूपरेखा - प्रस्तावना
- मगध पर आक्रमण
- पंजाब विजय / आक्रमण
- मगध पर पुन: आक्रमण
- सेल्युकस से युद्ध
- सेल्युकस से संधि
- निष्कर्ष
प्रस्तावना - चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य वंश और मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे, जिनकी गणना भारत के महानतम शासकों में की जाती है तथा जिन्हे "प्रथम भारतीय ऐतिहासिक सम्राट" की उपाधि भी प्राप्त है।चंद्रगुप्त मौर्य का सिंहसनारोहण साधरण्यता 322 BC माना जाता है, उहोनें लगभग 24 वर्ष तक शासन किया। और जैन साहित्य से चंद्रगुप्त के अंतिम दिनो के विषय में ज्ञात होता है कि वे अपने अंतिम दिनो मे जैन धर्म के अनुयायी के रूप में दक्षिण भारत में ही व्यातीत किये। 298 BC मे उनकी मृत्यु हो गई।
मगध पर आक्रमण - तत्कालिन समय में 'मगध' भारत का शक्तिशाली साम्राज्य था। चंद्रगुप्त एवं चाणक्य ने मिलकर एक सुदृढ़ सेना का निर्माण कर तथा कुछ सैनिकों को वेतन के आधार पर लेकर मगध साम्राज्य की राजधानी - "पाटलिपुत्र" पर आक्रमण किया लेकिन यह आक्रमण एक बहुत बड़ी भुल साबित हुई जिस कारण चंद्रगुप्त और चाणक्य को वेश बदलकर मगध से भागना पड़ा इस युद्ध में उन्हें इन दिनो यह सिख मिली की "आक्रमण हमेशा सीमावर्ती राज्यो से केंद्र की ओर करना चाहिए इस प्रकार यह आक्रमणन असफ़ल रहा।
पंजाब विजय / आक्रमण - चंद्रगुप्त एक योग्य और वीर योद्धा था उसने मगध आक्रमण में असफ़ल होने के बाद भी पुन: एक संतुलित सेना के साथ सीमावर्ती प्रान्त पंजाब की ओर बढ़ा क्यूकी इस समय सिकंदर के मृत्यु के बाद पंजाब में विद्रोह आरंभ हो चूका था अंत: यह एक उपयुक्त अवसर था जिसका लाभ उठाते हुए चंद्रगुप्त ने संपूर्ण सैनिक शक्ति के साथ युनानियों पर एक सफल आक्रमण कर पंजाब में विजय हासिल की जो चंद्रगुप्त की एक अप्रत्याशित सफल थी।
मगध पर पुन: आक्रमण - पंजाब पर अधिकार के बाद चंद्रगुप्त की शक्ति अत्याधिक बढ गई थी अंत: चंद्रगुप्त के पथप्रदर्शक चाणक्य ने अपनी दुरदर्शी योजना के अंतर्गत 'नेपाल नरेश पर्वतक' से चंद्रगुप्त की संधि कराई और एक बेहतर रणनीति के साथ पुन: मगध पर आक्रमण किया जिसमे वह सफल रहा। इस युद्ध में मगधराज धनानंद मारा गया तथा एक कुटनीतिक चाल के तहत "नेपाल नरेश पर्वतक एवम उसके पुत्र मलयकेतु" की हत्या कर दी गई जिसके बाद उसी वर्ष " 322 BC मे चाणक्य द्वारा मगध के सिंहासन पर चंद्रगुप्त का राज्याभिषेक किया गया।"
सेल्युकस से युद्ध - नंद वंश को समाप्त कर चंद्रगुप्त "उत्तर - भारत" के एक विशाल राज्य मगध का सम्राट बन गया। इस समय सिकंदर के मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य अनेक भागो में बंट गया था जिस्मे उसके 'सेनापति सेल्युकस' को बेबीलोन का राज्य प्राप्त हुआ था अंत: 303 BC में सेल्युकस ने साम्राज्य विस्तार हेतु भारत पर आक्रमण किया किसका सामना चंद्रगुप्त मौर्य ने सफलतापूर्वक किया लेकिन इस युद्ध का अंत एक संधि से समाप्त हुआ।
सेल्युकस से संधि -
- सेल्युकस ने इस संधि के अंतर्गत अपनी 'पुत्री हेलेना' का विवाह चंद्रगुप्त से कर चंद्रगुप्त को "एरियाना प्रदेश (कबूल, गंधार,हिरात, मकरान) का विस्तृत भु - भाग" प्रदान किया जिसके परिणाम स्वरुप चंद्रगुप्त का राज्य जो केवल सिंधु नदी तक सीमित था वह हिंदुकुश तक विस्तृत हो गया।
निष्कर्ष - उपरोक्त विवरनानुसार यह ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त मौर्य न केवल एक महान विजेता, साम्राज्य निर्माता अपितु एक कुशल एवम योग्य प्रशासक भी थे जिंहोने अपनी व्यक्तीगत कुशलता एवं योग्यता के आधार पर इतनी उपलब्धियां प्राप्त कर स्वयं को एक विशाल साम्राज्य का सम्राट बनाया। लेकिन चंद्रगुप्त की महानता इस बात में निहित है कि " उन्होने अपने अल्पकालीन शासन काल में इतनी उपलब्धियां हासिल की जितनी किसी अन्य शासक ने नहीं की।"
सन्दर्भ ग्रन्थ सुची - साहित्य भवन प्रकाशन
लेखक का नाम - डॉ.ए.के.मित्तल
पृष्ठ क्रमांक - 131,132,133,134।