सिकंदर का भारत आक्रमण या अभियान एवं उसके आक्रमण का भारत पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिये।

 •  रूपरेखा - प्रस्तावना 

                - सिकंदर का भारतीय अभियान या आक्रमण 

                • असप आक्रमण 

                • नीसा विजय 

                • अश्वकायनों पर आक्रमण 

                • तक्षशिला विजय

                • सिकंदर एवं पोरस का युद्ध

                • ग्लोग्निकाई पर आक्रमण 

                •  गंदरिस विजय

                • कठो पर आक्रमण 

                • अन्य विजय 

                • सौभूति पर अंतिम आक्रमण 

                - सिकंदर के आक्रमण का प्रभाव 

                • राजनीतिक प्रभाव 

                • ऐतिहासिक प्रभाव 

               • व्यापार पर प्रभाव

                • नगरो का विस्तार एवं शिल्पियों में वृद्धि             

                • तिथिक्रम का ज्ञान 

                - निष्कर्ष  

प्रस्तावना - चौथी शताब्दी ईसा पूर्व युनान के उत्तर - पूर्व में एक शक्तिशाली साम्राज्य का उदय हुआ जिसका नाम मकदूनिया था। इसके शासक "फिलिप" जो बहुत साम्राज्यवादी थे: उन्होंने कई राज्यों पर आक्रमण कर एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की।  सिकंदर, वह शक्तिशाली शासक "फिलिप" का पुत्र था जो उसके पिता के समान ही महत्वाकांक्षी था, सिकंदर 336 ईसा पूर्व में राजसिंहासन पर आसीन हुआ था जो (326 ईसा पूर्व में) विश्वविजय के सपने लेकर भारत आया था। 

             


सिकंदर का भारतीय अभियान (आक्रमण)

• असप आक्रमण -  असप से सिकंदर का भारतीय अभियान शुरू हुआ, असप के लोगो ने सिकंदर का वीरता से सिकंदर के साथ सावधानी से सामना किया उनकी तिखी लड़ाई हुई और अंत में सिकंदर की विजय हुई और उसने 40,000 पुरुषों को बंदी बना लिया तथा 2,40,000 बैलों को अपने अधिकार में ले लिया।

• नीसा विजय -  नीसा विजय के बाद सिकंदर ने एक और 
पहाड़ी राज्य नीसा पर आक्रमण किया लेकिन नीसा के लोगो ने सिकंदर के सामने अपना समर्पण कर दिया और भेंट में 300 घुड़सवार सैनिक दिए गए।

•अश्वकायनों पर आक्रमण - नीसा में विश्राम के बाद सिकंदर ने अश्वकायनों पर आक्रमण किया जिन्की राजधानी मसग में था, यहां का शासक - राजा असकेनस था। अश्वकायन शक्तिशाली राज्य संभवताः सिकंदर के लिए यहां विजय प्राप्त करना आसान नहीं होता, लेकिन युद्ध के दौरान राजा असकेन को तीर लगने से उनकी मृत्यु हो गई और "रानी क्लियोओफिस" ने सिकंदर का अपना आत्म समर्पण कर दिया।

जिसके बाद सिकंदर ने ओपा, बजीरा, दिरता, ओनस आदि राज्यो पर सिकंदर ने विजय प्राप्त कर सभी विजित क्षेत्रों के क्षत्रप "शशिगुप्त" को नियुक्त किया।

तक्षशिला विजय - "326 ईसा पूर्व" में सिकंदर तक्षशिला पहुंचा जहां "राजा आंभी" द्वारा सिकंदर का भव्य स्वागत किया गया और उसे भेंट स्वरूप सैनिक सहायता प्रदान की गई जिसका कारण "पोरस" से शत्रुता था अत: तक्षशिला के आत्मसमर्पण के फलस्वरुप तक्षशिला पर युनानियों का अधिकार हुआ।

 तथा इसके अतिरिक्त निकटवर्ती शासकों ने सिकंदर के समक्ष  आत्समर्पण कर दिया।

सिकंदर एवं पोरस का युद्ध - "  झेलम एवम चिनाब" नदी के मध्य "केकय प्रदेश" अवस्थित था जिसका शासक "पोरस" था। युनानी - स्रोतो" से ज्ञात होता है कि इस युद्ध में "सिकंदर का प्रिय घोड़ा - बुकाफेला" और पोरस का बेटा मारा गया था । लेकिन बाद में एलेक्जेंडर पोरस के व्यक्तित्व से प्रभावित नदी व्यास तक के सभी विजित प्रदेशों का क्षत्रप पोरस को बना देता है और पोरस को उसका राज्य वापस लौटा देता है।

• ग्लोग्निकाई पर आक्रमण - पोरस से मित्रता के बाद सिकंदर ने ग्लोग्निकाई पर आक्रमण कर उसके "37 नगरों" पर अधिकार कर लिया।  

गंदरिस विजय -  यह चिनाब के पार का क्षेत्र था जहां सिकंदर के प्रवेश करते ही गंदरिस का शासक  छोटा पोरस भाग निकला व यहां सिकंदर का राज स्थापित  हो गया।

सिकंदर एवं पोरस का युद्ध - "  झेलम एवम चिनाब" नदी के मध्य "केकय प्रदेश" अवस्थित था जिसका शासक "पोरस" था। युनानी - स्रोतो" से ज्ञात होता है कि इस युद्ध में "सिकंदर का प्रिय घोड़ा - बुकाफेला" और पोरस का बेटा मारा गया था । लेकिन बाद में एलेक्जेंडर पोरस के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर व्यास नदी तक के सभी विजित प्रदेशों का क्षत्रप पोरस को बना देता है और पोरस को उसका राज्य वापस कर देता है।

• कठो पर आक्रमण - इसके बाद सिकंदर ने कठ गणराज्य पर अक्रामण किया जिनकी राजधानी "सांगल" थी, ये कठ अपने साहस एवम रणकौशल के लिए प्रसिद्ध थे अत: सिकंदर इनसे हार गया लेकिन तत्पश्चात् पोरस की सहायता से सिकंदर ने कठो पर विजय प्राप्त कर उनकी राजधानी सांगल को नष्ट कर दिया।


• अन्य विजय - 326 ईसा पूर्व में सिकंदर ने "पिंपरमा के किले" पर आक्रमण कर अपना अधिकार स्थापित किया।

• सौभूति पर अंतिम आक्रमण - अंत में सिकंदर ने सौभूति गणराज्य पर आक्रमण कर व्यास नदी के किनारे स्वदेश लौटने की घोषणा कर दी।


सिकंदर के आक्रमण का प्रभाव 

• राजनीतिक प्रभाव -  कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि सिकंदर के आक्रमण का भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा वह आंधी की तरह आया और तूफान की तरह चला गया लेकिन इतिहासकारों के मत को पूर्णता सत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि  सिकंदर के आक्रमण ने "पश्चिमोत्तर भारत के सैनिक दुर्बलता" को स्पष्ट कर दिया जिससे 'सैनिक संगठन' की भावना को अपूर्व योगदान मिला व भारतीय एकता का मार्ग प्रशस्त हुआ।

• ऐतिहासिक प्रभाव - यूनानी जब भारत आए तो वे अपने साथ कुछ ऐसे लोगो को साथ लाए जिन्होनें अपने विचारों को लिपिबद्ध किया अत: यूनानी स्रोत से ज्ञात होता है कि तत्कालिक भारत में अर्थहीन प्रथाएं चलन मे थी।

 • व्यापार पर प्रभाव - यूनानी पश्चिम एशिया तथा ईरान को पार करते हुए भारत आए इस प्रकार उन्होंने अफगानिस्तान तथा ईरान होते हुए "एशिया माइनर से पूर्वी भूमध्य सागर" के किनारे तक भारत के लिए अनेक व्यापारिक मार्ग खोल दिए जिससे व्यापार में वृद्धि हुई।

• नगरों का विस्तार एवं शिल्पियों में वृद्धि - उत्तर पश्चिम भारत व पश्चिमी एशिया के मध्य व्यापारिक सम्भावनाओं ने नगरो के विकास को प्रोत्साहित किया एवं नगरों के विस्तार के परिणामस्वरूप शिल्पियों की संख्या में वृद्धि हुई जो श्रेणीयों में संगठित थे।

• तिथिक्रम का ज्ञान - सिकंदर के आक्रमण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव यह हुआ कि इसने प्राचीन भारत के तिथिक्रम संबंधि गुत्थीयों को सुलझा दिया जिससे इतिहास लेखन में सहायता मिली। 

 निष्कर्ष - उपरोक्त लिखित विवरण अनुसार यह स्पष्ट है कि सिकंदर के आक्रमण का भारत पर कोई स्थायी राजनीतिक प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन अन्य क्षेत्रों में युनानियों ने भारतीयों को अवश्य ही प्रभावित किया क्योंकि भारतीय संस्कृति एक विकसित संस्कृति थी जिसे विकास करने के लिए किसी अन्य विदेशी संस्कृति की आवश्यकता ना थी।


                संदर्भ ग्रंथ सुची - साहित्य भवन प्रकाशन 
                लेखक का नाम - डॉ. ए.के. मित्तल
                संस्करण          - 2021
                पृष्ठ क्रमांक       - 117,118,119,120,121
                                       ,122,123,124,125,126.

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