वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत
प्रस्तावना -: अल्फ्रेड वेगनर मूलतः एक "जलवायु विज्ञानवेत्ता" थे। वे लम्बे समय से पृथ्वी पर होने वाले जलवायु परिवर्तनों की सप्रमाण एवं कालक्रम के आधार पर व्याख्या करने में संलग्न रहे और उन्हें विषुवत रेखीय प्रदेश, दक्षिणी आफ्रीका तथा मध्य यूरोप व अन्य भागों में अपने खोज के दौरान जलवायु सम्बन्धी ऐसे प्रमाण मिले जो वर्तमान जलवायु से मेल नहीं खाते।इस प्रकार वेगनर महोदय ने अपने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का प्रतिपादन सन 1912 में किया, जिसे वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के नाम से जाना जाता है।
वेगनर महोदय के विस्थापन के मूल आधार -:
- जलवायु
- जीवाश्म
- भू - आकृति
- चट्टानों में समानता
- उत्तरी अमेरिका
- यूरोप
- एशिया
- दक्षिणी अमेरिका
- अफ्रीका
- मेडागास्कर
- भारतीय उपमहाद्वीप
- ऑस्ट्रेलिया
- अंटार्टिका
[ WEGENER`S CONTINENTAL DRIFT THEORY ]
वेगनर महोदय के अनुसार, सभी महाद्वीप "कर्बोनिफेरस युग में एक विशाल भू - खंड के रूप में आपस में जुड़े हुए थे किंतु पृथ्वी के विशिष्ट शक्तियों के प्रभाव मुख्यतः ये दो दिशाओं में विस्थापित होने लगे -
* उत्तर कि ओर प्रवाह - उत्तर दिशा की ओर विस्थापन का कारण पृथ्वी का "प्लवन बल एवं गुरुत्वाकर्षण बल"था।
* पश्चिम कि ओर प्रवाह - पश्चिम एवं पश्चिमोत्तरउत्तरकी ओर विस्थापन का कारण "सूर्य एवं चन्द्रमा" की सम्मिलित ज्वारीय शक्ति थी जिसने स्थलभाग को अपनी ओर आकर्षित किया।
प्राचीन समय में युरेशिया एवं अफ्रीका के स्थल भाग उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित हुए तथा दोनों अमेरिका के स्थलभाग पश्चिम एवं पश्चिमोत्तर की ओर प्रवाहित हुए, जिसके परिणामस्वरुप उत्तर दिशा में विस्थापन से भारत के दक्षिण एवं अफ्रीका के पूर्व में "हिन्द - महासागर" की रचना हुई इसी प्रकार पश्चिम एवं पश्चिमोत्तर की ओर प्रवाह से अमेरिका व अफ्रीका के मध्य "अटलांटिक महासागर" की उत्पत्ति हुई। उपरोक्त विवरण के अनुसार,उत्तर की ओर विस्थापन का कारण "प्लवन बल एवं गुरुत्वाकर्षण बल" रहा तथा पश्चिम एवं पश्चिमोत्तरउत्तर "सूर्य एवं चन्द्रमा " की सम्मिलित ज्वारीय शक्ति थी।
अंत में वेगनर महोदय विस्थापन सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए लिखते है महाद्वीपीय स्थल खंड जो कि सियाल ( सिलिका एवं एल्यूमीनियम ) से बनी है जिनका घनत्व कम होता है और वे हलके होते है ये महाद्वीपीय स्थल खंड पैन्थालासा जो सीमा ( मैग्नीशियम ) अर्थात भारी घनत्व वाले पदार्थों से निर्मित है इसके ऊपर सियाल बिना किसी रुकावट के तैर रहा है और "पर्वतों के उत्पत्ति" का कारण वेगनर महोदय ने सीमा एवं सियाल के घर्षण से उत्पन्न हुई गाद के जमने से माना।
सिद्धांत के पक्ष में प्रमाण
- अंधमहासागर के दोनों तटों के पर्वत क्रमों में आज भी भू - वैज्ञानिक समानता, सरंचना एवं खनिजों कि प्राप्ति में एकरूपता पाई जाती है।
- अंधमहासागर के दोनों किनारें आज भी एक जैसे है जिन्हें भली - भांति मिलाया जा सकता है तटों के इस प्रकार परस्पर समायोजन कि स्थिति को "जिग - सोफिट" का नाम दिया गया।
- सन 1927 में टुटोइट नामक भू - वैज्ञानिक ने दक्षिण अमेरिका के पूर्वी - तट व अफ्रीका के पश्चिमी तट का संरचानात्मक अध्ययन कर बतलाया कि दोनों तटीय भाग कि सरंचना में समरूपता है तथा सामान सरंचना क्षेत्र में ही हीरे की खानें पाई जाती है।
- फर्न नामक उष्णकटिबंधीय पौधे का फ्रांस, इंग्लैंड एवं ग्रीनलैंड में पाया जाना, जबकि यह क्षेत्र शीत कटिबंध के अंतर्गत आता है।
- कर्बोनिफेरस युग में हुए हिमानीकरण के प्रभाव दक्षिणी अफ्रीका, भारत, ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में सामान रूप से पाया जाना तभी संभव है जब ये सभी भाग कभी एक विशाल स्थलखंड के रूप में आपस में जुड़े हो।
- ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले कंगारू पशु जीवाश्म का ब्राज़ील में पाया जाना।
- अंटार्टिका महाद्वीप जहाँ वर्तमान समय में बर्फ ही बर्फ पाया जाता है जहाँ वनस्पति की कल्पना भी नहीं की जा सकती वहां कोयले का प्राप्त होना यह स्पष्ट करता है कि यह स्थलखंड किसी काल में उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से जुड़ा हुआ था।
- वेगनर महोदय ने अपना सिद्धांत निष्पक्ष रूप से प्रतिपादित न करके व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत किया।
- वेगनर महोदय ने पहले बताया कि, सियाल सीमा पर बिना किसी रूकावट के तैर रहा है किंतु एक स्थान पर उन्होनें स्वयं यह स्वीकार किया कि, 'पेंजिया व पैन्थालासा के घर्षण स्वरुप उत्तरी अमेरिका में रॉकीज पर्वत तथा दक्षिणी अमेरिका में एंडीज पर्वत का निर्माण हुआ' अत: उनके सिद्धांत में विरोधाभास दिखलायी पड़ता है।
- वेगनर महोदय ने यह सही - सही नहीं बताया है कि, कर्बोनिफेरस युग में पेंजिया क्यों विखंडित हुआ ?और विषुवत रेखा की ओर क्यों विस्थापित हुआ ?
- वेगनर महोदय का महाद्वीपीय तटों में संरचनात्मक समानता समस्त महाद्वीपों पर आसानी से लागु नहीं होती।