भारतीय संविधान की विशेषताएं || || Features of Indian Constitution ||

भारतीय संविधान की विशेषताएं 


रूपरेखा - प्रस्तावना

            - परिभाषा

            - भारतीय संविधान की विशेषताएं 

            - निष्कर्ष 


प्रस्तावना - भारत का संविधान, "संविधान - निर्मात्री सभा" द्वारा लिखित एक आलेख एवं कानूनी दस्तावेज़ है जिसे बनाने में 2 साल, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था तथा जिसके निर्माण  हेतु बी.आर. अम्बेडकर द्वारा 60 देशों के संविधान का अध्ययन कर 64 लाख रुपये  की लागत से भारतीय संविधान का निर्माण किया गया जो 26 जनवरी सन् 1950 को लागू हुआ था। भारत का मूल संविधान 395 - अनुच्छेद, 8 - अनुसूची एवं 22 - भागों में विभाजित था जो आज वर्तमान समय में अनेक संविधान संशोधनों के पश्चात् 470 - अनुच्छेद, 12 - अनुसूची एवं 25 - भागों में विभक्त है। इस प्रकार आज भारतीय संविधान समुचे विश्व का सर्वाधिक विस्तृत संविधान है।

परिभाषा - संविधान वह संवैधानिक दस्तावेज़ या नियम पुस्तिका है जिसमें नियमों एवं उप - नियमों के माध्यम से राज्य के संस्थाओं का संचालन किया जाता है।

भारतीय संविधान की विशेषताएं 

• लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान - भारतीय संविधान लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान है अर्थात् यह भारतीय जनता द्वारा निर्मित संविधान है और इस संविधान के द्वारा अंतिम शक्ति भारतीय जनता को ही प्रदान की गई है। यद्यपि संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है, "हम भारत के लोग ..... दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 ईस्वी को एतद् द्वारा निर्मित संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"

•  सर्वाधिक व्यापक संविधान - भारत का संविधान अत्यन्त विस्तृत है जिस कारण इसे विश्व का सर्व - व्यापक संविधान कहा जाता है।जिसके विशालता का कारण यह है कि भारतीय संविधान निर्माताओं ने संविधान में उल्लेखित प्रावधानों की काफ़ी विस्तृत रूप में व्याख्या की गई है ताकि संविधान में वर्णित प्रावधानों का पालन करते समय "शासन - प्रशासन" को अधिक कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े यही कारण है कि भारत का संविधान इतना वृहद हैं ।

• संघात्मक एवं एकात्मक का मिश्रण - भारतीय संविधान संघात्मक एवं एकात्मक व्यवस्था दोनों का एक सुंदर मिश्रण है। भारतीय संविधान को संघात्मक, इस आधार पर कहा जा सकता है कि यह एक लिखित संविधान है जिसमें सर्वोच्च एवं स्वतंत्र न्यायपालिका का प्रावधान है जिसमें केंद्र व राज्य के मध्य शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है वहीं हमारे संविधान में कुछ ऐसे भी तत्व है जो एकात्मक शासन व्यवस्था को समेटे हुए हैं जैसे -: आपातकाल सम्बन्धी प्रावधान, राज्य में राज्यपालों की नियुक्ति, अखिल भारतीय सेवायें, एकल नागरिकता आदि।

• लोकतांत्रिक गणराज्य - भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है। लोकतांत्रिक का तात्पर्य यह है कि भारत एक ऐसा गणराज्य होगा जहाँ राज्याध्यक्ष का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से किया जाएगा एवं गणराज्य  का तात्पर्य यह है कि भारत का कोई भी नागरिक अपनी योग्यता के आधार पर देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हो सकता है।

• एकल नागरिकता - भारतीय संविधान भारत के नागरिकों के लिए एकल नागरिकता की व्यवस्था करता है अर्थात् भारत का नागरिक केवल भारत की नागरिकता धारण करेगा ना कि भारत के किसी राज्य की जबकि यदि हम अमेरिका के संविधान पर नज़र डालें तो यह देखते है कि अमेरिका में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था की गई है अर्थात् अमेरिका के नागरिक सर्वप्रथम  संघ की नागरिकाता धारण करते है तत्पश्चात वे अमेरिकी राज्य की नागरिकता धारण करते हैं।

• संसदीय शासन व्यवस्था - भारतीय संविधान में "संसदीय शासन प्राणाली" को अपनाया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि भारतीय मंत्रिपरिषद, राज्य - विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी होगी एवं सरकार का अस्तित्व सत्ता में तब तक रहेगा जब तक वह अपना विश्वास लोकसभा में बनाये रखता है अर्थात् सत्ता पक्ष को सरकार बनायें रखने के लिए लोकसभा में साधरण बहुमत आवश्यक है लेकिन किसी असमंजस की स्थिति में विपक्ष द्वारा, सत्ता पक्ष के विरुद्ध अविश्वाश प्रस्ताव लाया जा सकता है एवं यदि यह प्रस्ताव पारित हो जाता है तो सत्ता पक्ष अर्थात् वर्तमान सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।

• संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न गणराज्य - संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न का अर्थ यह है कि भारत की सत्ता पर किसी विदेशी शक्ति का अधिकार नहीं है, भारत अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अपने इच्छानुसार आचरण कर सकता है अर्थात् भारत अपनी विदेश नीति का संचालन करने के लिए स्वतंत्र है और वह किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते को मानने के लिए बाध्य नहीं है अर्थात् वह संप्रभु है।

• कठोरता और लचीलेपन का समन्वय -  लचीला संविधान उस संविधान को कहा जाता है जिसके साधारण और संवैधानिक कानून में कोई अंतर नहीं होता जिसमें विधि - निर्माण की साधारण प्रक्रिया के द्वारा संविधान में संशोधन किया जा सकता है वहीं किसी संविधान को कठोर संविधान इस आधार पर कहा जा सकता है जहां संविधान संशोधन के लिए कानून निर्माण की साधारण प्रक्रिया से भिन्न एवं जटिल प्रक्रिया को अपनाया जाता है

 इस प्रकार भारतीय संविधान कठोरता और लचीलेपन का एक उत्तम समिश्रण है जहां "किसी राज्य के नाम अथवा सीमा" में कानून निर्माण की साधारण प्रक्रिया के द्वारा आसानी से संशोधन किया जा सकता है वहीं "संघ एवं इकाइयों के मध्य शक्ति का विभाजन" एक ऐसा ही मुद्दा है जहां संसद के समस्त सदस्यों के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत के अतिरिक्‍त कम से कम भारत के आधे राज्‍यों के विधानमंडलों की सहमति या अनुसमर्थन आवश्यक हैं।

• समाजवादी राज्य - भारतीय संविधान में "42वें संविधान संशोधन" द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक "समाजवादी राज्य" घोषित किया गया है अर्थात् भारत एक ऐसा गणराज्य होगा जो समाज के प्रत्येक वर्ग के हित के विषय में सोच - विचार कर किसी नीति - निर्णय को कार्यरूप प्रदान करेगा।

• राज्य के नीति निर्देशक तत्व - भारतीय संविधान के चौथे अध्याय में शासन संचालन हेतु मूलभूत सिद्धांतों का वर्णन किया गया है जिन्हे "राज्य के नीति निर्देशक तत्व" कहा जाता है। भारतीय संविधान में नीति निदेशक तत्व के इस अवधारणा या विचार को आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 37 के तहत "राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को वैधानिक शक्ति तो प्राप्त नहीं, लेकिन इन्हें राजनीतिक शक्ति अवश्य ही प्राप्त है जो भारत को एक वास्तविक लोक कल्याणकारी राज्य का स्वरूप प्रदान करती है।

• लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का आदर्श - भारतीय संविधान निर्माताओं द्वारा भारत के लिए एक आदर्श निश्चित किया गया है वह आदर्श है "लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना"। भारतीय संविधान निर्माता स्पष्ट रूप से यह चाहते थे कि भारत के केन्द्र और राज्य की सरकारें नागरिकों की पुष्टिकर उनके बुनियादी आवश्यकताओं की आपूर्ति एवं अधिकाधिक सुविधायें प्रदान करें, नागरिकों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाये और उनके द्वारा अधिक - से - अधिक संभव सीमा तक आर्थिक समानता की स्थापना की जाए अत: इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु "नियोजित विकास की प्रणाली को अपनाया गया है।

निष्कर्ष - उपरोक्त विवरणानुसार यह ज्ञात होता है कि भारतीय संविधान का निर्माण संविधान निर्माताओं द्वारा पूर्णत: तत्कालिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया गया है जो एक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की दृष्टि से अब तक का एक सुन्दर एवं विस्तारपूर्वक लिखित संविधान है जिसके द्वारा आज इतने विस्तृत पैमाने पर एक लोकतांत्रिक गणराज्य का संचालन इतने व्यवस्थित एवं सुसंगठित रूप से किया जा रहा है।


संदर्भ ग्रंथ सूची - साहित्य भवन प्रकाशन 

लेखक का नाम - डॉ. पुखराज जैन6

संस्करण - 32वां (2022)


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