• राज्य एवं उसके आवश्यक तत्व •
रूपरेखा - प्रस्तावना
- अर्थ
- परिभाषा
- राज्य के आवश्यक तत्व
- निष्कर्ष
|| राज्य एवं उसके आवश्यक तत्व||
• प्रस्तावना - राज्य नामक संस्था की उत्पत्ति प्राचीन समय में मनुष्यों में स्थायी निवास की प्रवृत्ति के विकास के साथ हुआ जिससे मूलभूत सुविधाओँ की आवश्यकता महसुस हुई अन्त: इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु राज्य नामक संस्था की स्थापना हुई। आज वर्तमान समय में राज्य शब्द का अर्थ विभिन्न अर्थों में लिया जाता है उदाहरणार्थ भारत एवं अमेरिका के संविधान में "संघ की इकाइयों" को राज्य कहा गया है परंतु राजनीति विज्ञान की दृष्टि से यह राज्य नहीं बल्कि राज्य की इकाइयां मात्र हैं।
• परिभाषा - किसी निश्चित सीमाओं वाले प्रभुसत्तात्मक भूखंड जो किसी एक संप्रभु शासन या संस्था के अधीन संचालित हो राज्य कहलाता है।
गिलक्राइस्ट के अनुसार," राज्य उसे कहते है जहां कुछ लोग एक निश्चित प्रदेश में, एक सरकार के अधीन संगठित होते है। यह सरकार आंतरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता को प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतंत्र होती है।"
गॉर्नर के अनुसार,"राजनीति विज्ञान और सार्वजनिक कानून की धारणा के रूप में राज्य संस्था कम या अधिक व्यक्तियों का ऐसा संगठन है जो किसी प्रदेश में एक निश्चित भूभाग में स्थायी रूप से रहता हो जो बाहरी नियंत्रण से पूर्ण स्वतंत्र हो और जिसका ऐसा संगठित शासन हो जिसके आदेशों का पालन नागरिकों का एक विशाल समुदाय सम्भवत: करता हो।"
राज्य के आवश्यक तत्व
• जनसंख्या - किसी निश्चित क्षेत्र एवं समय में निवास करने वाले लोगों के समूह को जनसंख्या कहते हैं। जिससे किसी समुदाय का निर्माण होता हैं। मानव के सामाजिकता के गुण या विशेषता के कारण ही राज्य नामक संस्था की उत्पत्ति हुई है।
प्लेटो ने अपनी पुस्तक "Republic" में आदर्श राज्य का चित्रण करते हुए कहा है कि एक आदर्श राज्य में केवल 5,040 नागरिक ही होने चाहिए। इसी प्रकार रूसो के अनुसार एक राज्य में केवल 10,000 नागरिक ही होने चाहिए।
परंतु वर्तमान समय में "आवागमन के साधनों के अत्यधिक विकास एवं प्रतिनिधियात्मक शासन के प्रचलन" से जनसंख्या के प्रश्न पर विचार करना व्यर्थ - सा हो गया है अत: जनसंख्या का अनुपात राज्य के प्राकृतिक साधनों के अनुपात में होना चाहिए ताकि नागरिकों का संगठत्म जीवन निर्वाह उचित रूप से हो।
• निश्चित भूभाग - यह राज्य का दूसरा आवश्यक तत्व है। क्योंकि जब तक कोई जन समुदाय स्थायी रूप से पृथ्वी के किसी धरातलीय भाग पर निवास नहीं करते तब तक राज्य नामक संस्था का निर्माण नहीं हो सकता तथा इन जन समुदायों के लिए उस क्षेत्र में शांति एवं व्यवस्था बनायें रखने के लिए निश्चित क्षेत्र में रहना आवश्यक है अर्थात् स्थायित्व आवश्यक है। निश्चित भू - भाग अवश्य ही राज्य के महत्त्व एवं समृद्धि में अभिवृद्धि करते है। जैसे किसी क्षेत्र में बहुमूल्य खनिजों की उपलब्धता या इंग्लैंड की भाँति जलीय भाग से घिरे होने के कारण अतीत में अन्य देशों से सुरक्षा परंतु वर्तमान समय में राज्य का छोटा होना अत्यंत हानिकारक माना जाता है और सुरक्षा की दृष्टि से बड़े राज्य का पक्ष लिया जाता है। अत: राज्य की जनसंख्या और संबंधित राज्य के क्षेत्रफल में एक निश्चित अनुपात होना चाहिए अन्यथा अधिक असमानता के कारण संबंधित राज्य सदैव "राजनीति और आर्थिक अयोग्यताओं" से पीड़ित रहेगा।
• सरकार - यदि जनसंख्या राज्य का व्यक्तिगत तत्व है, निश्चित भूभाग राज्य का भौतिक तत्व है तो सरकार राज्य का संगठनात्मक तत्व है। क्योंकि किसी निश्चित भूभाग के निवासी तब तक एक राज्य का निर्माण नहीं कर सकते जब तक उनका एक राजनीतिक संगठन ना हो राजनीतिक संगठन अर्थात् सरकार का एक ऐसा साधन जिसके द्वारा राज्य के सभी लक्ष्यों एवं नीतियों को पूर्ण किया जा सकें। प्राचीन समय में सरकार का संगठन, सरल था व उसके कार्य सीमित थे परंतु आज वर्तमान समय में शासन के तीन अंग है - व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका। इसके अतिरिक्त प्राचीन राजनीतिक संगठन का कार्य केवल बाह्याक्रमण से सुरक्षा और आंतरिक क्षेत्र में शांति स्थापित करना था परंतु आज वर्तमान समय में लोक - कल्याणकारी राज्य के अवधारणा को अपनाए जाने के कारण सरकार का कार्य क्षेत्र व्यापक हो गया है।
• संप्रभुता - यह राज्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। जिसे "राज्य का प्राण" कहा जाता है, जिसके बिना किसी राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती तथा एक निश्चित क्षेत्र में रहने वाले साधन संपन्न लोग भी उस समय तक किसी राज्य का निर्माण नहीं कर सकते जब तक इनके अधिकार में संप्रभुता ना हो। संप्रभुता का तात्पर्य यह है कि वह शक्ति जो अपने राज्य में आंतरिक रूप से सर्वोच्च हो जिसके आदेशों का पालन राज्य के सभी व्यक्तियों द्वारा समान रूप से किया जाता हो और वह बाहरी नियंत्रण से पूर्ण रूप से मुक्त हो जो अन्य राज्यों से स्वतन्त्रतापूर्वक अपनी इच्छा अनुसार संबंध स्थापित कर सकें।
• निष्कर्ष - उपरोक्त विवरणानुसार यह कहा जा सकता है कि किसी राज्य के निर्माण में मुख्य रूप से चार तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है - जनसंख्या, निश्चित भूभाग, सरकार व संप्रभुता तथा इन चारों में से किसी भी तत्व के अभाव में किसी राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
संदर्भ ग्रंथ सूची - साहित्य भवन प्रकाशन
लेखक का नाम - डॉ. पुखराज जैन
संस्करण - 32वां (2022)
पृष्ठ क्रमांक - 42,43,44,45,46।
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